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नो पाम ऑयल’ सिर्फ भ्रम फैलाने वाली मार्केटिंग! IFBA ने जताई आपत्ति

इंड फूड एंड बेवरेज एसोसिएशन (IFBA) ने 'नो पाम ऑयल' लेबल को भ्रामक बताया है। IFBA का कहना है कि यह एक मार्केटिंग चाल है, जो लोगों को गलत सूचना देकर डर फैलाती है। जानिए पाम ऑयल के फायदे और इसके पीछे का सच।

नई दिल्ली। इंड फूड एंड बेवरेज एसोसिएशन (IFBA) ने बाजार में तेजी से फैलते ‘नो पाम ऑयल’ (No Palm Oil) लेबल पर कड़ी आपत्ति जताई है। एसोसिएशन का कहना है कि यह केवल एक मार्केटिंग हथकंडा है, जिसका मकसद लोगों के स्वास्थ्य को लेकर भ्रम फैलाना और डर पैदा कर उत्पादों की बिक्री बढ़ाना है।

IFBA के चेयरमैन दीपक जॉली ने कहा कि पाम ऑयल भारत में 1800 के दशक से खपत में है और यह पूरी तरह से सुरक्षित है। उन्होंने कहा, “‘नो पाम ऑयल’ जैसे लेबल लोगों को गलत जानकारी देते हैं। ये वैज्ञानिक सच्चाई के बजाय सिर्फ प्रचार पर आधारित हैं।

एसोसिएशन ने इस बात पर भी जोर दिया कि पाम ऑयल न केवल सस्ता और टिकाऊ है, बल्कि इसमें विटामिन E, A, और प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट जैसे कई पोषक तत्व भी होते हैं। साथ ही, इसमें ट्रांस फैट बिल्कुल नहीं होता, जो दिल और मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है।

ICMR-NIN (नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन) द्वारा जारी 2024 की नई डाइट गाइडलाइन में भी पाम ऑयल को एक स्वस्थ विकल्प के रूप में स्वीकार किया गया है। IFBA की साइंटिफिक डायरेक्टर शिल्पा अग्रवाल ने बताया कि, “पाम ऑयल में पाए जाने वाले टोकोट्रिएनॉल्स (Tocotrienols) कोलेस्ट्रॉल कम करने और दिल की सेहत सुधारने में मदद करते हैं।

वैज्ञानिक तथ्यों को नजरअंदाज कर रहा है बाजार

आज के दौर में उपभोक्ता सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की बातों पर जल्दी भरोसा कर लेते हैं, जो अक्सर अधूरी या भ्रामक जानकारी फैलाते हैं। IFBA ने अपील की है कि कंपनियां डर का फायदा उठाकर ‘पाम ऑयल फ्री’ जैसे भ्रामक शब्दों का इस्तेमाल न करें।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बाधा

IFBA ने चेताया कि इस तरह के प्रचार अभियान सरकार की ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना और खाद्य तेलों के उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। वर्ष 2021 में भारत सरकार ने नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स-ऑयल पाम (NMEO-OP) की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य देश में पाम ऑयल उत्पादन को बढ़ावा देना है।

तेलंगाना जैसे राज्यों में ऑयल पाम की खेती से किसानों को 1 एकड़ में ₹1 लाख तक की सालाना कमाई हो रही है। सरकार पहले 3 वर्षों तक प्रति एकड़ ₹36,000 तक की सब्सिडी भी दे रही है। इससे न केवल किसान लाभान्वित हो रहे हैं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक मजबूती भी सुनिश्चित हो रही है।

IFBA ने स्पष्ट किया है कि पाम ऑयल के खिलाफ डर फैलाने की मुहिम वैज्ञानिक तथ्यों पर नहीं, बल्कि बाजार की चाल है। उपभोक्ताओं से अपील की गई है कि वे सोशल मीडिया ट्रेंड्स के बजाय विज्ञान और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय पर भरोसा करें।

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