भाकपा के वरिष्ठ नेता कॉ. रामाशीष पासवान के नि-धन पर उमड़ा जनसैलाब
नेताओं ने कहा कि उनका जाना न केवल पार्टी के लिए, बल्कि शेखपुरा जिले के सामाजिक-राजनीतिक जीवन के लिए अपूरणीय क्षति है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता और बैठ बेगारी, बंधुआ मजदूरी एवं सामाजिक शोषण के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक रहे कॉमरेड रामाशीष पासवान का पटना स्थित आईजीआईएमएस में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और इलाज के दौरान जीवन-मरण के बीच संघर्ष करते हुए उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर फैलते ही शेखपुरा जिला समेत पूरे इलाके में शोक की लहर दौड़ गई।
कॉमरेड रामाशीष पासवान मूलतः अरियरी प्रखंड के देवपुरी गांव के निवासी थे, और हाल में वे कारे गांव में रह रहे थे। उनके निधन की सूचना मिलते ही भाकपा कार्यकर्ताओं, नेताओं और महागठबंधन के सहयोगी दलों के नेताओं का तांता उनके निवास स्थान पर लग गया। शेखपुरा जिला पार्टी कार्यालय पर झंडा झुका कर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
श्रद्धांजलि सभा में भाकपा के राज्य कार्यकारिणी सदस्य सह जिला सचिव प्रभात कुमार पांडेय, सहायक जिला सचिव गुलेश्वर यादव, वरिष्ठ नेता चंद्र भूषण प्रसाद, खेत मजदूर यूनियन के जिला संयोजक धुरी पासवान, किसान सभा के जिला सचिव ललित शर्मा, जिला उपाध्यक्ष दिनेश कुमार सिंह, वीरेंद्र पांडेय, सुमित्रा देवी, रंजीत पासवान, हकीम पासवान समेत बड़ी संख्या में पार्टी के नेता और कार्यकर्ता मौजूद थे।
त्याग और संघर्ष की मिसाल बने कॉ. रामाशीष
श्रद्धांजलि देते हुए प्रभात कुमार पांडेय ने कहा कि कॉ. रामाशीष पासवान ने जवानी में ही कम्युनिस्ट पार्टी का लाल झंडा थाम लिया और जीवन भर गरीब, किसान, मजदूर, दलित, महिला, छात्र और नौजवानों के हक़ में संघर्ष करते रहे। वह अरियरी अंचल में बैठ बेगारी, बंधुआगिरी और सामाजिक अन्याय के खिलाफ हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे।
उनका जीवन त्याग और समर्पण की जीवंत मिसाल रहा। उनके पिता जब चौकीदार पद से सेवानिवृत्त हो रहे थे, तो उन्होंने वह नौकरी स्वयं न लेकर अपने छोटे भाई को दिलवाया और खुद को समाज सेवा में समर्पित कर दिया। मेहनत-मजदूरी करते हुए उन्होंने अपने पुत्र धर्मवीर प्रभाकर को प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) बनाने तक का संघर्ष किया।
अंतिम विदाई में पार्टी झंडा और कंधा
कॉ. रामाशीष पासवान को श्रद्धांजलि देते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें पार्टी के झंडे में लपेटकर अंतिम विदाई दी। शव यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए और अर्थी को कंधा देकर उन्हें अंतिम विदाई दी।